राजस्थान के राष्ट्रिय उधान

राजस्थान के  राष्ट्रिय उधान 


रणथम्बोर  राष्रीय उधान - सवाई माधोपुर  इसे 1955  में वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित क्या गया   भारत कि प्रथम बाघा परियोजना यहा 1  अप्रेल1973 को शुरू कि गई    
 रणथंबोर  राज्य का प्रथम राष्ट्रिय उधान है । 2008  को यहा दुनिया कि प्रथम बाघ विस्थापन घटना रणथम्भोर अभ्यारण्य  से बाघ सुल्तान तथा बबली बाघिन को रणथम्बोर से सरिस्का वन्य जिव अभ्यारण्य  में  स्थांतरित किया
कैलाश सांखला -   इन्हे टाइगर मेन  ऑफ़ इंडिया खा जाता है । इन्हे हालही में2012 में  राजस्थान रत्न दिया गया है
ये भारत में  बाघ परियोजना के जनक है    बाघ परियाजना के प्रथम महानिदेशक थे
रेड डेटा बुक में बाघ का नाम शामिल करने का श्रेय इन्हे ही जाता है 



केवला देव घना पक्षी अभ्यारण्य  -  भरतपुर -- इस वन्य जिव अभ्यारण्य 1956  को बनाया गया
प्राचीन शिव मंदिर के नाम पर इस अभ्यारण्य का नाम पड़ा । यह एशिया कि सबसे बड़ी पक्षियों कि  प्रजनन स्थली है यहा सर्वाधिक मात्रा  में साइबेरियन सारस आते है  यहा पाई जाने  वाली ऐंचा नामक घास में फसकर सबसे अधिक पक्षियों कि मृत्यु हो जाती  है ।   इस अभ्यारण्य को पानी अजान बांध  से मिलता है ।
1985  को इस अभ्यारण्य को  यूनेस्को ने विश्व प्राकृतिक विश्व धरोहर में शामिल किया है ।



मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रिय उधान  -कोटा  झालावाड  9 जनवरी 2012  को राष्ट्रिय उधान बनाने कि अधसूचना  जारी कि  प्रारम्भ में इसका नाम दर्रा वन्य जिव अभ्यारण्य था 2003  में गहलोत सरकार ने इसका नाम राजीव गांधी राष्ट्रीय उधान कर दिया 2006  में वसुंधरा सरकार ने इसका नाम मुकुंदरा हिल्स था इसे राष्ट्रिय उधान बनाने कि घोषणा कि इस राष्ट्रिय उधान में  हीरामन  जाती के गगरौनी  तोते पाये जाते है जो मनुष्य  जैसी आवाज निकालते  है । यह रानी  पद्मनी का प्रिय तोता था ।  इस उधान में अबली मिनी का महल है जिसे राजस्थान का दूसरा ताजमहल कहते है नोट - राजस्थान का ताजमहल जसवंत थड़ा है इस अभ्यारण्य में गुप्तकालीन हुणो  द्वारा निर्मित प्राचीन शिव मंदिर है  



सरिस्का वन्य जिव अभ्यारण्य -अलवर राजस्थान कि दूसरी बाघ परियोजना  1978 में प्रारम्भ कि गई यह अभ्यारण्य NH 11  पर स्थित  है था स्वर्ण त्रिकोण  पर स्थित है । इस अभ्यारण्य कि प्रमुख विशेषता यहा हरे कबूतर पाया जाना है । यहा नीलकंठेश्वर  का मंदिर है । यहा भृतहरि कि तपो स्थली है । जो राजस्थान में कनफटे नाथो कि प्रमुख पीठ है
NOTE -नाथ सम्प्रदाय कि अन्य पीठ -           प्रमुख पीठ -  महा मंदिर जोधपुर             बैरागपंथी  नाथो कि पीठ  - राताड़ूँगा  पुष्कर


                                                                                                                                                              बंध बरैठा -भरतपुर इसे परिंदो का घर  कहा  है ।यह जरखो के लिए प्रसिद है ।  यहा  वर्त्तमान में       पान कि खेती होती है । मुग़ल काल में यहा नील कि खेती होती थी          
NOTE -मोरासागर राजस्थान का दूसरा स्थान है जहा पान  कि खेती होती है । पान  के खेत को बजैड़ा कहते है । पान कि खेती करने वाली जाती को तमोली कहते है 



राष्ट्रीय मरू उधान -जैसलमेर ,बाड़मेर  में स्थित है । यह राजस्थान का क्षेत्रफल कि दृष्टि से सबसे बड़ा वन्य जीव अभ्यारण्य है । अभ्यारण्य का क्षेत्रफल 3162 किमी है।  यहाँ पर राज्य पक्षी गोडावण पाया जाता है।
NOTE -गोडावण राजस्थान में तीन स्थानो पर पाया जाता है। 1. सोरसन -बारां 2. संखलिया -अजमेर
आकलवुड पार्क जैसलमेर में है।  यहा चूहे के दांत के अवशेष मिले है। इस उधान के क्षेत्र में लगभग 60  किमी
लम्बी सेवण  घास कि पट्टी है। सेवण  घास का स्थानीय नाम लिलोण है। इस उधान में पश्चिम राजस्थान का सबसे जहरीला सांप पीवणा पाया जाता है।




गजनेर वन्य जीव अभयारण्य -बीकानेर प्रमुख विशेषता यहाँ बटबड पक्षी पाया जाता है। जिसे रेत का तीतर  कहा  जाता है।  वैज्ञानिक नाम सैडगाउन   है।




तालछापर - चुरू -पुराना नाम द्रोणपुर। इसकी प्रमुख विशेषता काले हरिण  है राजस्थान कि अत्यंत नरम घास मोचिया साइप्रस रोटेण्डस पाई जाती है। कुरंजा पक्षी भी पाये जाते है NOTE -राजस्थान में कुरंजा पक्षी सर्वाधिक खींचन गाँव जोधपुर में है।  तालछापर  खारे पानी कि झील है।


नाहरगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य -जयपुर -यहा राज्य का प्रथम व भारत का दूसरा  जैविक उधान स्थापित किया गया है। यहा भारत का तीसरा बियर रेस्क्यू सेंटर  स्थापित किया गया है।



कुम्भलगढ़  वन्य जीव अभ्यारण्य -राजसमंद पाली अजमेर  -यह भेड़िये कि प्रजनन स्थली है।यह राजस्थान का एकमात्र अभ्यारण्य है जिसका पानी बंगाल की खाड़ी  में तथा अरब सागर में जाता है। रणकपुर के जैन मंदिर मथाई नदी पर आदिनाथ  को समर्पित है।







माउन्ट आबू वन्य जीव अभ्यारण्य - सिरोही - यह अभ्यारण्य जंगली मुर्गो के लिए प्रसिद  है।





जयसमंद वन्य जीव अभ्यारण्य -उदयपुर -सर्वाधिक बघेरे पाये जाते है। जलचरो कि बस्ती है।




फुलवारी कि नाल - उदयपुर  देश का प्रथम ह्यूमन एनाटॉमी पार्क कि स्थापना मानसी  वाकल का उद्गम स्थल और सोम नदी इसमें से प्रवाहित होती है। NOTE -देश कि प्रथम पेयजल आधारित जल सुरंग परियोजना  मानसी  वाकल  परियोजना है। 



बस्सी अभ्यारण्य - चितोडगढ़ -यहा बाघ विचरण करते थे  ओरई व बामनी नदियो का उदग्म  स्थल है।






सीता माता वन्य जीव अभ्यारण्य -प्रतापगढ़  -सर्वाधिक जैव विविधता वाला अभ्यारण्य है। हिमालय पर्वत के बाद में सावधिक ओषधीय पौधे यही पाये जाते है।  इस अभ्यारण्य को चीतलों कि भूमि खा जाता है।
यहा सागवान के वैन मिलते है। यह उड़न गिलहरियों के के लिए प्रसिद है  जो महुआ पेड़ कि कोटरों में पाई जाती है। यहा लव -कुश नाम के दो झरने है




जवाहर सागर वन्य जीव अभ्यारण्य - कोटा -सर्वाधिक मगरमच्छ पाये जाते है उतर भारत का प्रथम सर्प उधान इसी अभ्यारण्य में है। राजस्थान कि प्रथम विष प्रयोगशाला  है  दूसरा सर्प उधान भरतपुर में स्थापित किया जायेगा 



राष्ट्रिय चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य -उत्तरप्रदेश- मध्यप्रदेश-राजस्थान -इसे घड़ियालों का संसार कहते है।
यह राजस्थान का एकमात्र अंतर्राजीय अभ्यारण्य है। जो राजस्थान ,मध्यप्रदेश ,उत्तरप्रदेश  में फैला है।
इस अभ्यारण्य कि अन्य विशेषता -यहा डॉल्फिन मछली {गांगियांसूंग }पायी जाती है। 



सज्ज्नगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य -उदयपुर -यह राजस्थान का सबसे छोटा अभ्यारण्य है। यह नील गाय ,लोमड़ी के लिए प्रसिद है। इसका क्षेत्रफल 5. 19 किमी है




शेरगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य  - बारां -इसे सांपो कि शरणस्थली कहा जाता है। इसमें से परवन नदी प्रवाहित होती है।




रामगढ विषधारी वन्य जीव अभ्यारण्य -बूंदी -राजस्थान में बाघ परियोजना के अलावा झा बाघ स्व्तंत्र रूप से विचरण करते देखे जा सकते है।



टॉडगढ़ रावली वन्य जीव अभ्यारण्य -पाली राजसमंद  अजमेर -यह तीन जिलो में फैला है। इस अभ्यारण्य में टॉडगढ़ किला स्थित है।





भैसरोडग़ढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य -चितौड़गढ़ -


जमुवायरामगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य -जयपुर - इस भयारण्य में रामगढ़ झील स्थित है जिसमे 1982 के एशियाई खेलो के दोरान रामगढ़ झील में नौकायन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।



केसरबाग  -धोलपुर 


राम सागर -धोलपुर 

वनविहार -धोलपुर 

कनकसागर पक्षी अभ्यारण्य -बूंदी 

कैलादेवी वन्य जीव अभ्यारण्य - करौली